Friday, April 15, 2011

बाबा रामदेव और गोविंदाचार्य का मेल

बाबा रामदेव और गोविंदाचार्य का मेल

बेशक बाबा रामदेव को लोकपाल विधेयक की मसौदा समिति मे जगह न मिली हो । लेकिंन बाबा की हसरतें अभी मरी नही है। आध्यात्म की दुनिया मे रम कर योग जगत मे अपना डंका पीटने वाले बाबा रामदेव को लोकतंत्र के पैमाने पर परखा जाए तो बाबा की सोच मरते हुए लोकतंत्र के लिये किसी संजीवनी से कम नही। बाबा अपनी ओर से भरसक कोशिश कर रहे हैं कि उनकी सोच सियासी फलक पर मुकाम हासिल करे । लिहाजा बाबा अब कभी बीजेपी के थिंक टेंैंक माने जाने वाले खाटी स्वदेशी विचारधारा के गोबिंदाचार्य से गठजोड़ करने की सोच रहे हैं। गोबिंदाचार्य भारतीय राजनीति के वे विचारक हैं जिन्होंने अपनी वैचारिक ताकत से सियासत के फर्श पर रहने वाली बीजेपी को सियासी अर्श तक पंहुचाया है। जब गोबिंदाचार्य बीजेपी के महासचिव थे बीजेपी पर हर उस आदमी ने भंरोसा किया जो गांधीवादी सोच का था और स्वदेशी विचार के बलबूते ग्राम रामराज्य के सपने देख रहा था। बेशक अडवाणी की राम रथ यात्रा ने बीजेपी को जोश और जूनून दिया हो लेकिंन गोबिंदाचार्य के स्वदेशी जागरण ने देश के उस मतदाता बीजेपी से जोड़ कर होशो -हवास दिया है। ये बात दूसरी है कि सियासत की काली कोठरी मे घुसने के बाद बीजेपी का चरित्र भी दूसरे सियासी दलों की तरह ही हो गया हो। शायद यही वजह थी कि के0एन0गोविंदाचार्य ने बीजेपी की चादर उतार फेंक दी और खामोशी के साथ सियासी अज्ञातवास ले कर अपने गुरू नाना जी देशमुख के आदर्श और उनके रास्ते पर चलने लगे। लेकिंन एक बार फिर से मुल्क मे अन्ना की आंधी ने गोबिंदाचार्य की कुटिया के दरवाजों को भी खटखटाया है। बाबा रामदेव भी विदेशी समान के विरोधी हैं और गोविंदाचार्य भी स्वदेशी विचारधारा के हैं। लिहाजा नया बाबा और आर्चाय के गठजोड़ की पूरी संभावना दिखाई दे रही है। अगर सब कुछ ठीक -ठाक रहा तो बाबा और गोविंदाचार्य का ये गठजोड़ भाजपा के लिये किसी ताबूत से कम नही होगा। ऐसे मे जाहिर है कि हिंदुत्व का ढोल पीटने वाले खेमे मे खलबली मचे । योग गुरू का मैनजमेंट और गोविदाचार्य की सोच आने वाले वक्त मे हर सियासी दल के लिये खतरे की घंटी है। क्योंकि बाबा की पूरे देश म ेचल रही योग कक्षायें साबित करती हैं कि बाबा रामदेव पर एक बडे़ तबके का भंरोसा है। ये भी मुमकिंन है कि उन कक्षाओं मे आने वालों का एक बड़ा हिस्सा बाबा रामदेव और गोविंदाचार्य पर देश की मौजूदा तस्वीर बदलने का भंरोसा कर सकता है। और अगर ऐसा हुआ तो कई सियासी पार्टियों का गणित गड़बड़ा जायेगा । क्योंकि अन्ना की आंधी ने दिखा दिया है कि देश की जनता के दिलों मे कही बदलाव के शोले भड़क रहे हैं....जिंन्हें सिर्फ एक हवा की झोंके की दरकार है।